कुपोषण से लड़ाई में 'संपर्क' का साथ

कुपोषण से लड़ाई में 'संपर्क' का साथ



भोपाल : आज जब भारत अन्य देशों के साथ दुनिया की सबसे बड़ी महामारी के खिलाफ जंग लड़ रहा है , तो यह केवल वायरस का सीधा प्रभाव नहीं है जो बच्चों के स्वास्थ्य को प्रभावित कर रहा है , बल्कि इसके साथ ही इस बीमारी को नियंत्रण में लाने के उपायों का परिणाम भी बच्चों की कमज़ोर ज़िंदगियों को भयंकर खतरे में और ज़्यादा मुश्किलों में धकेल रहा है।


भारत को ना सिर्फ वर्तमान के स्वास्थ्य संकट का सामना करना है बल्कि इसके साथ पलायन और विभिन्न रुकावटों के चलते पैदा हुई बेरोज़गारी और ग्रामीण क्षेत्रों में संकट की स्थिति, खाद्य आपूर्ति में रुकावटें, कुपोषण, और व्यापक स्तर पर फैली असमानता की मौजूदा समस्याओं से भी लड़ना है जो आगे और भी ज़्यादा गंभीर हो जाएंगी।


संपूर्ण भारत में कई राज्य कुपोषण के लिए समुदाय आधारित प्रबंधन की रणनीतियाँ लागू करने के लिए उनके अपने कार्यक्रम शुरू कर रहे हैं। ऐसे ही लक्ष्य पर ध्यान केंद्रित करने वाला राज्य है मध्य प्रदेश। एनएफएचएस IV के अनुसार 5 वर्ष से कम उम्र के 42.8% बच्चों का वज़न उनकी उम्र के हिसाब से कम है , 5 वर्ष से कम उम्र के 42% बच्चे अविकसित हैं यानि हर दूसरा बच्चा गंभीर रूप से कुपोषित है, और 5 वर्ष से कम उम्र के 25.8% बच्चे अत्यधिक रूप से कमज़ोर है।


खाद्य एवं पोषण सुरक्षा गठबंधन (सीएफएनएस) की ओर से लुबना अब्दुल्ला, स्टेट प्रोग्राम हेड
(सीएसएएम)- मध्य प्रदेश ने कहा, “पोषण के क्षेत्र में काम करने वाले सभी हितधारकों के लिए गंभीर रूप से कुपोषणग्रस्त (एसएएम) बच्चों की व्यवस्था सबसे प्रमुख कार्य होता है। इसलिए एक साथ अनेक कार्यक्रम लागू किए गए हैं। इन कार्यक्रमों की दिशा काफी प्रभावी साबित हुई है लेकिन इन्हें दीर्घकाल के लिए जारी नहीं रखा जा सका। एसएएम का समुदाय आधारित प्रबंधन लंबे समय तक जारी रखा जा सकता है, जब यह संबंधित समुदाय का एजेंडा बन जाता है और उनका स्वामित्व सुनिश्चित किया जाना ज़रुरी हो जाता है जिससे एक अनुकूल वातावरण निर्माण किया जा सके। समुदाय की भागीदारी एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है और इसके लिए सरकार को सारा नियंत्रण अपने पास रखना ज़रुरी होता है। समुदाय की भागीदारी का मतलब है स्थानीय सरकार, पीआरआई, चुने गए प्रतिनिधि, मान्यता प्राप्त समूहों के सक्रिय सदस्यों सहित विभिन्न हितधारकों का शामिल होना है। घरों/ समुदाय के स्तर पर बच्चों के स्वास्थ्य एवं पोषण की स्थिति में सुधार की ज़िम्मेदारी इन सदस्यों को स्वीकार करनी होगी। ”


अब तक मध्य प्रदेश के 9 जिलों में सीएमएएम को लागू किया गया है जहाँ फील्ड पर जाकर काम करने वालों के प्रशिक्षण का कार्य पूरा कर लिया गया है। राज्य के सेंटर ऑफ एक्सेलेंस (सीओई) यानि उत्कृष्टता केंद्र- एम्स, भोपाल के शिशु रोग विशेषज्ञ और समुदाय और परिवार औषधि विभाग द्वारा एसएएम के प्रबंधन के लिए तकनीकी सहायता उपलब्ध कराई जा रही है। भोपाल द्वारा रियल टाइम डाटा हासिल करने के लिए एक सीएमएएम मोबाइल एप्लिकेशन विकसित कराया गया है। इसे राज्य के आईसीडीएस सुपरविज़न ऐप – ‘SAMPRK’ (संपर्क) के साथ एकीकृत किया गया है और इसे आईसीडीएस एमआईएस वेबसाइट / डाटाबेस पर होस्ट किया (रखा) जाता है। इस कार्यक्रम का विकास कवरेज की कार्यक्षमता, कार्यान्वयन और गुणवत्ता के लिए समीक्षा के अधीन है।


मध्यम गंभीर कुपोषण और तीव्र गंभीर कुपोषण में बढ़ोतरी के साथ चाइल्डहुड वेस्टिंग (अत्यधिक कमज़ोर) होने में 19.8% से 21 % (एनएफएचएस-IIIऔरIV) की वृद्धि जो पिछले 10 सालों में देखी गई है, एक गंभीर चिंता का विषय बना हुआ है। नवीनतम जीएनआर 2020 की रिपोर्ट के अनुसार भारत में पांच वर्ष से कम उम्र के 37.9 फीसदी बच्चे अविकसित हैं, और 20.8 फीसदी अत्यधिक कमज़ोर हैं यानि एक प्रकार का कुपोषण जिसमें बच्चे उनकी लंबाई के हिसाब से काफी दुबले हैं। अन्य विकासशील देशों की तुलना में ये आँकड़े काफी ज़्यादा है। ग्लोबल न्यूट्रीशन रिपोर्ट 2020 के अनुसार पोषण का लक्ष्य हासिल करने की दिशा में भारत लक्ष्य से काफी दूर है।


कोविड-19 महामारी का प्रकोप जबसे जारी है, तब से खाद्य आपूर्ति की निरंतरता एक चुनौतीपूर्ण कार्य बना हुआ है। आंगनवाड़ी केंद्र / पोषण पुनर्वसन केंद्रों को कोविड-19 प्रतिक्रिया रणनीतियों के लिए क्वारंटाइन केंद्रों की तरह इस्तेमाल किए जाने के कारण इन केंद्रों पर सेवाओं का पहुंचना पूरी तरह बाधित है और इसलिए अत्यधिक कमज़ोर उच्च जोखिम बाले बच्चे उपचार और देखभाल से वंचित हो गए हैं।


आगामी कुछ महीनों में संकट देश में एसएएम की संपूर्ण समस्या को और भी ज़्यादा गंभीर बना सकता है। इसलिए यह अत्यावश्यक है कि एसएएम प्रबंधन को अत्यावश्यक स्वास्थ्य सेवाओं के अंतर्गत शामिल किया जाए और अत्यधिक कमज़ोर /कुपोषित बच्चों के प्रबंधन के लिए सेवाओं की निरंतरता का समन्वय सक्षम तरीके से किया जाए।


वर्तमान में भारतीय राज्य एसएएम प्रबंधन के लिए उनके अपने निधि का इस्तेमाल कर रहे हैं। राष्ट्रीय दिशानिर्देशों के अभाव में विकास भागीदारों के साथ राज्य सरकारें या तो सुरक्षित और पोषणयुक्त तुरंत खाने योग्य उपचारात्मक आहार या घर के लिए राशन जैसे विकल्पों का इस्तेमाल कर रहे हैं।


दरअसल, भारत के लिए कोविड- 19 और कुपोषण के खिलाफ उसके संघर्ष और जंग में जीत के लिए यह महत्वपूर्ण है कि अन्य राज्य भी सीएमएएम जैसे सर्वश्रेष्ठ तरीके अपनाएं जिनका इस चुनौतीपूर्ण समय में भी कारगर होना साबित हो चुका है।


 


 


Popular posts