मध्य प्रदेश में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा चलाये जा रहे पोषण अभियान की उड़ीं धज्जियां

मध्यप्रदेश के आंगड़वाड़ी कार्यकर्ताओं को फोन न मिलने से महत्त्वपूर्ण काम पड़े हैं ठप्प

भोपाल / तकनीकी मानकों पर खरा न उतर पाने की वजह से टेंडर से बाहर हुईं कंपनियां अब टेंडर प्रक्रिया को बाधित करने की जुगत भिड़ा रहीं हैं। मध्य प्रदेश सरकार के लघु उद्योग निगम ने जनवरी माह में 76000 मोबाइल की खरीद का एक टेंडर निकाला था। उस टेंडर की दौड़ से बाहर हुयी कंपनियां अपने निजी स्वार्थ सिद्ध करने में प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा चलाये जा रहे पोषण अभियान की धज्जियां उड़ाने से भी पीछे नहीं हट रहीं हैं। निगम ने मोबाइल खरीद का एक टेंडर जीईएम (Government e marketplace) के द्वारा जारी किया था। इसमें 6 कंपनियों ने भाग लिया जिनमें से 2 सैमसंग की बोलियों और एक एलजी की बिड मान्य रही बाकी तीन बोलियां तकनीकी आधार पर निरस्त कर दीं गयीं। इनमें 2 बोलियां लावा कम्पनी की ओर से लगायीं गयीं थीं। 

 

चूंकि एलजी ने सबसे कम दाम में मोबाइल देने की बोली लगायी थी लिहाजा उसको ही एल-वन के आधार पर मोबाइल सप्लाई करने का ठेका दे दिया गया। और यहां से 'बिल्ली का छींका' वाली कहावत चरितार्थ होना शुरू हो गई। उच्च पदस्थ सरकारी सूत्रों की मानें तो टेंडर से बाहर हुई कंपनियों ने इसको अपनी अहम की लड़ाई बना लिया और अनर्गल प्रलापों व आरोपों को आधार बनाकर टेंडर को निरस्त कराने की कवायद में जुट गईं। इससे पहले भी इन कंपनियों को और राज्यों में तकनीकी कारणों से टेंडर से बाहर किया जा चुका है लेकिन इस बार इनकी हताशा इतनी बढ़ गयी कि इन्होंने भारत सरकार के जीईएम पोर्टल की पारदर्शिता पर ही सवाल खड़ा कर दिया।

 

हालांकि टेंडर से बाहर हुयी इन कंपनियों की शिकायतों के आधार पर एलयूएन विभाग ने तथ्यों की जांच की और पाया कि इस जांच व सुनवाई के दौरान टेेंडर प्रक्रिया पूरी तरह से पारदर्शी रही। सभी अपीलकर्ताओ की सभी शिकायतों को विभाग के द्वारा सुना गया है एवं उनका निराकरण भी किया गया। इसके बाद भी अन्य माध्यमों से निराधार आरोप लगाने के पीछे मकसद सिर्फ निजी स्वार्थ है। यहां गौर करने वाली बात है कि आर्डर मिलने के लगभग 37 दिनों बाद बिना विभागीय जांच के टेंडर निरस्त नहीं हो सकता। इसमें भी जब टेंडर प्रक्रिया जीईएम पोर्टल के माध्यम से की गई हो। आर्डर पाने वाली कंपनी ने जीईएम की फ़ीस भी जमा करा दी और टेंडर की शर्तो के अनुसार कार्य शुरू भी कर दिया है। जिसकी जानकारी विभाग को भी है। 

 

मालूम हो कि केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने 17 जनवरी 2018 को पोषण अभियान योजना के तहत सभी आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओ को फोन देने की अधिसूचना जारी की थी। जिसके बाद मध्यप्रदेश की तत्कालीन शिवराज सरकार ने भी फोन खरीदने की प्रक्रिया शुरू कर दी। इस योजना के अंतर्गत 21 राज्यों ने फ़ोन की खरीद पूरी कर ली है लेकिन मध्य प्रदेश सरकार इस योजना को 2 सालों से लागू नहीं कर पा रही है। 14 सितंबर 2018 से 23 जनवरी 2020 तक 8 बार टेंडर निरस्त हुआ, जिनमें मुख्य रूप से लावा और सैमसंग भाग लेते रहे हैं। 

 

23 जनवरी 2020 को 8वीं बार टेन्डर भारत सरकार के ई—मार्केटप्लेस जीईएम पर निकाला। गया जिसमें कुल 6 कम्पनियों ने भाग लिया। लगभग 55 दिनों की विभागीय प्रक्रिया एवं महिला एवं बाल विकास विभाग से एनओसी और वित्तीय मंजूरी मिलने बाद ही एलयूएन विभाग ने 19 मार्च 2020 को वित्तीय रूप से योग्य पाई गई कंपनी को फोन खरीदने के लिए आर्डर जारी कर दिया। तकनीकि रूप से अयोग्य घोषित हुई कंपनियों ने लघु उद्योग निगम पर आरोप लगाया कि आर्डर देने में जल्दबाज़ी की गयी है। जबकि इस कार्य के लिए निकाले गए टेंडर पिछले दो सालों में सात दफा निरस्त हो चुके हैं। 

 

जीईएम एक पारदर्शी प्रक्रिया : भारत सरकार का पोर्टल जीईएम विभिन्न सरकारी विभागों और सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों के उपयोग में आने वाली वस्तुओं और सेवाओं की खरीद के लिए ऑनलाइन सुविधा प्रदान करता है। जिसका मकसद ही सरकारी खरीद में पारदर्शिता लाना और उसकी दक्षता बढ़ाने के साथ-साथ खरीद में तेजी लाना है।

 

तकनीकि रूप से अयोग्य घोषित हुई कंपनियों ने उच्च न्यायालय का भी दरवाजा खटखटाया और हाईकोर्ट, मुख्यमंत्री / सरकार एवं प्रबन्ध संचालक एलयूएन विभाग पर ही सवाल खड़ा कर दिया। हालांकि, हाई कोर्ट की जबलपुर एवं इंदौर बेंच ने शिकायतों को निराधार और तथ्यहीन बताकर कंपनियों की अपील ख़ारिज कर दी। लेकिन कंपनियों ने अभी भी हार नहीं मानी है और उनकी कोशिश यही है कि मीडिया एवं राजनेताओं को भ्रामक जानकारियां देकर इस टेंडर को येन केन प्रकारेण निरस्त करवा दिया जाये जिससे उनके लिए आगे का रास्ता खुल जाये। उनका उद्देश्य एक ही है कि यह टेंडर आठवीं बार भी निरस्त हो जाए ताकि उन्हें टेंडर में हेरफेर करने का मौका मिले। 

 

यह कहना गलत नहीं होगा कि यह विरोध वास्तव में सरकार का नहीं बल्कि उन गरीब गर्भवती महिलाओं एवं कुपोषित बच्चों का है जिन्हें विभिन्न योजनाओं के द्वारा राशन दिया जाता है और पोषक भोजन उपलब्ध कराया जाता है। लेकिन कंपनियों द्वारा निजी स्वार्थ साधने के लिए मीडिया एवं नेताओं को गलत जानकारी दी। आरोपों की वजह से दवाब में आकर हो सकता है कि सरकार टेंडर निरस्त करने का विचार करे और यही इन कंपनियों की मंशा है।